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जमी पर गिरा पड़ा था

जमी पर गिरा पड़ा है, आसमाँ का चमकता तारा 
तड़प ना-समझे दिल की, ये दिल तुम्हे ही पुकारा

उम्मीद थी कुछ सुलह हो, पर मिला सिर्फ धोखा
ढ़लती हुई हर शाम पूछे मिलेगी नदी को किनारा

ज़ख्म ऐसी जगह लगी कि मरहम भी बेअसर है
दिल के करीब था जो, आज  नही उनका सहारा

जुदा गर न होते तुम हमसे, निभाते  इश्क़ हमारा
तुम आज मेरी होती शब और मैं  साजन तुम्हारा


©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला - महासमुन्द  (छःग)


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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Nov-2021 04:37 PM

बहुत खूबसूरत रचना

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Niraj Pandey

06-Nov-2021 02:26 PM

वाह बहुत खूब

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बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌

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